तिलक से भी होते हैसंतों के संप्रदाय की पहचान

अलग-अलग अखाड़ों के साधु-संतों के मस्तक पर दमकता तिलक भी श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। यह तिलक संतों के संप्रदाय एवं पंथ की पहचान होते हैं। हर साधु किसी न किसी अखाड़े से संबंधित है और अखाड़े के संतों का अपना एक विशेष तिलक होता है। हिन्दु धर्म में संतों के जितने मत, पंथ और संप्रदाय है और उन सबके भी अलग-अलग तिलक है।


वैष्णव पंथ में सबसे ज्यादा प्रकार के तिलक है। वैष्णव पंथ राम मार्गी और कृष्ण मार्गी परम्परा में बँटा हुआ है। इसके भी अलग-अलग मत, मठ और गुरु हैं, जिनकी परम्परा में वैष्णव तिलकों के 64 प्रकार हैं। वैष्णव पंथ के संतों में कुछ लालश्री तिलक लगाते हैं। इसमें आसपास चंदन एवं बीच में कुमकुम या हल्दी की खड़ी रेखा होती है। विष्णु स्वामी तिलक में माथे पर दो चौड़ी खड़ी रेखाएँ होती हैं। यह तिलक संकरा होते हुए भौंहों के बीच तक आता है। रामानंद तिलक में माथे पर चौड़ी खड़ी रेखाओं के साथ बीच में कुमकुम की खड़ी रेखा होती है। श्यामश्री तिलक कृष्ण उपासक वैष्णव लगाते हैं। इसमें आसपास गोपी चंदन की तथा बीच में काले रंग की मोटी खड़ी रेखा होती है।


   


शैव परम्परा में ललाट पर चंदन की आड़ी रेखा या त्रिपुंड लगाया जाता है। त्रिपुंड तिलक भगवान शिव के श्रृंगार का हिस्सा है। इस कारण अधिकतर शैव सन्यासी त्रिपुंड ही लगाते हैं। शैव परम्परा में अघोरी, कापालिक, तांत्रिक जैसे पंथ बदल जाने पर उनके तिलक लगाने की शैली भी बदल जाती है।


शक्ति के आराधक तिलक की शैली से ज्यादा तत्व पर ध्यान देते हैं। वे चंदन या कुमकुम के बजाय सिंदूर का तिलक लगाते हैं। गणपति आराधक, सूर्य आराधक, तांत्रिक, कापालिक आदि अलग प्रकार के तिलक लगाते हैं। इस प्रकार यह केवल धार्मिक मान्यता नहीं, इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी हैं। जितने संतों के मत, पंथ और संप्रदाय हैं, उन सबके अलग-अलग तिलक होते हैं।