बिजनौर के जलियांवाला काण्ड कहे जाने वाले नूरपुर थाना केस के अमर शहीद परवीन सिंह एवं रिक्खी सिंह

जिला बिजनौर के नूरपुर क्षेत्र के क्रांतिकारियों ने 16 अगस्त 1942 को नूरपुर में तिरंगा लहराने की शपथ ली थी, देश की तत्कालीन परिस्थितियों में यह बहुत कठिन शपथ थीपरवीन सिंह तथा रिक्खी सिंह ने अपनी जान की परवाह न करते हुए इस काम को पूरा किया। बताया जाता है कि परवीन सिंह का निधन तिरंगा फहराने का प्रयास करते समय गोली लगने के थोड़ी देर बाद ही हो गया था, और परवीन सिंह थाने में ही शहीद हो गए थे, पुलिस ने उन का पार्थिव शरीर उनके परिवार वालों को नहीं दिया था, तथा चोरी-छिपे मिट्टी का तेल डाल कर जला दिया था। उधर 16 अगस्त 1942 को गिरफ्तारी के समय रिक्खी सिंह की हालत भी गंभीर हो गई थी। इसलिए जेल में मौजूद, अन्य सेनानियों ने उनको घर भेजने की बात कही जिसे पुलिस ने नहीं माना, और दिखावे के लिए जेल ही थोड़ा बहुत इलाज करना शुरू कर दिया, अच्छे इलाज के अभाव में रिक्खी सिंह का भी निधन हो गया था।



पुलिस रिक्खी सिंह का पार्थिव शरीर उनके परिवार वालों को न देकर परवीन सिंह की तरह चोरी-छिपे जला देना या गायब कर देना चाहती थी। पुलिस प्रशासन का मानना था कि किसी शहीद का पार्थिव शरीर देख कर जन-विद्रोह हो सकता है। परवीन सिंह तथा रिक्खी सिंह ने किसी के सामने झंडा फहराने का प्रण या कसम नहीं खाई थी, और अगर झंडा में फहराया जाता तब भी किसी का कोई नुकसान नहीं था, इन बातों के बाद भी इन दोनों ने देश के सम्मान तथा स्वतंत्रता सेनानियों-आंदोलनकरियों की बात रखने के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। देश भक्ति के ऐसे प्रसंग बहुत कम सुनने को मिलते हैं, जिनमें केवल देश के सम्मान की बात के लिए जान दे दी जाए। रिक्खी सिंह तथा परवीन सिंह ने देशभक्ति का एक विरला तथा अनोखा उदाहरण पेश किया था। धामपुर के महान साहित्यकार एवं स्वतंत्रता सेनानी चरण सिंह ‘सुमन' ने इन दोनों के ऊपर एक छोटी काव्य रचना भी की हैआजादी के बाद से प्रतिवर्ष 16 अगस्त को इन दोनों शहीदों की याद में नूरपुर थाने पर आज भी मेला लगता है।