क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए पुलिस की छापामारी का क्रम

16 अगस्त 1942 को पुलिस के भारी विरोध के बावजूद आंदोलनकारियों ने दोपहर एक-डेढ़ बजे के आस-पास नूरपुर थाने पर तिरंगा लगा दिया था। इस प्रयास में परवीन सिंह वहीं शहीद हो गए, तथा रिक्खी सिंह गम्भीर रूप से घायल हुए थे। भारी शोर- शराबे, भीड़, थाने की सीमा पर स्थित खाई-चाहरदीवारी तथा बहुत तेजी से घटे घटनाक्रम के कारण वहाँ मौजूद बहुत कम लोग ही इन दोनों के बारे में जान पाए। उधर पुलिस आन्दोलनकारियों के सम्भावित क्रोध से सशांकित हो उठी, उसे जान का खतरा महसूस हुआ, इससे पुलिस ने लाठीचार्ज तथा फायरिंग शुरू कर दी। थाने पर हुई लाठीचार्ज में फीना के क्षेत्रपाल सिंह के सिर तथा पैर में चोट आई थी। इस समय बारिश भी तेज हो गई। तिरंगा फहर ही चुका था। इन बातों के मिले-जुले प्रभाव से आन्दोलनकारी वापिस जाने लगे, इनको लौटते देख पुलिस की जान में जान आई। जब बहुत थोड़े लोग बचे तो पुलिस ने कुछ लोगों को तिरंगा फहराने वालों के नाम जानने के लिए गिरफ्तार कर रोक लिया। शाम के दो-ढाई बजे तक थाना परिसर तथा नूरपुर की सड़कें खाली हो चुकी थीं।


16 अगस्त 1942 को सुबह लगभग आठ बजे से क्रांतिकारी नूरपुर आना शुरू हो गए थे, तब से लेकर शाम के ढाई बजे तक थाना पुलिस भारी ऊहापोह से गुजरती रही, आन्दोलनकारीयों की भारी भीड़ देखकर उसको कुछ सूझ नहीं रहा था। दो- ढाई बजे के आस-पास जब सभी आन्दोलनकारी चले गए, तब जाकर पुलिस ने राहत की सांस ली और उसे ठण्डे दिमाग से सोचने का मौका मिला। थाना प्रभारी ने मार्गदर्शन लेने के लिए तुरंत इस घटना की खबर जिला कलेक्टर तथा पुलिस अधीक्षक के पास बिजनौर भिजवाई, तथा आंदोलनकारियों के प्रति जबाबी कार्यवाही की योजना बनाने लगा। थाना प्रभारी ने तिरंगा फहराने की बात सरकारी रिकार्ड मे दर्ज कर ली। सरकारी कागजों में यह घटना 'नूरपुर थाना केस' के नाम से भी जानी जाती है।



आसमान में बादल छाए हुए थे इस कारण रोशनी कम हो गई थी और शाम होने में भी मात्र 2.30 या 03 घंटे का समय शेष था। इसलिए थाना प्रभारी ने दिन के शेष बचे घंटो का उपयोग करने की ओर ध्यान दिया। तिरंगा फहराने के कार्यक्रम के सूत्रधार रहे लोगों को पकड़ना बहुत जरूरी था, परंतु यह स्पष्ट नहीं था कि नूरपुर क्षेत्र में यह कार्यक्रम किसने आयोजित कराया था। एक तो कार्यक्रम की पूर्व सूचना न मिल पाना पुलिस की बड़ी विफलता थी दूसरे अब इसके सूत्रधार लोगों को भी पुलिस नहीं पकड़ पाई तो यह और बड़ी विफलता मानी जाएगी। इसी दिमागी रस्साकशी में थाना प्रभारी ने सोचा कि उनउन जगहों पर तुरन्त जाया जाए जहाँ निश्चित तौर पर कोई ना कोई सूत्र मिलने की प्रबल सम्भावनाएँ हैंइसी बीच कुछ सिपाहियों ने प्रभारी को संकेत किया कि अमरोहा मार्ग से जो सेनानियों का दल आया था वह बहुत तेज-तर्रार तथा आंनदोलन के प्रति समर्पित था, साथ ही उस सड़क पर आना-जाना भी आसान है, क्योंकि दूसरी सड़कों की तुलना में उसकी हालत अच्छी है। इसलिए अन्य गाँवों में जाने की बजाय अमरोहा मार्ग पर बसे गावों पर छापा मारा जाए, निश्चित तौर पर हमें वहाँ कुछ लोग मिल जाएंगे, जो पुख्ता सुराग दे देंगे, कि तिरंगा फहराने का कार्यक्रम किसके द्वारा आयोजित तथा संचालित किया गया था। इस बात पर गौर करते हुए पुलिस ने 2-3 दल बनाएँ और छापा मारने के लिए आपस में गाँव बाँट लिए। थाना प्रभारी स्वयं घोड़े पर सवार होकर कुछ सिपाहियों के साथ अमरोहा मार्ग पर चल पड़ा। नूरपुर से निकलते-निकलते इस पुलिस दल को शाम के लगभग 4.30 बज गए थे। सबसे पहले तंगरोला, जाफराबाद कुरई और लिंडरपुर गाँव मिले, यहाँ के लोगों ने कहा कि हमारे गाँव से कौन लोग नूरपुर गए थे यह तो हमें नहीं पता, परंतु अधिकांश सेनानी रतनगढ़ और ग्राम फीना की दिशा से आए थे। क्रांतिकारीयों को अंजाम भुगतने की धमकी देते हुए पुलिस दल तेजी से रतनगढ़ की तरफ बढ़ा। रतनगढ़ में भी लोगों ने लगभग यही कहा कि हमारे गाँव से कौन-कौन लोग नूरपुर गए थे, यह तो हमें नहीं मालूम, परंतु ज्यादातर लोग फीना गाँव की दिशा से आए थे। लोगों द्वारा फीना का बार-बार नाम लिए जाने से पुलिस दल का ग्राम फीना के क्रांतिकारीयों पर शक गहरा हो गया और वे तेजी से उस तरफ बढ़े।


उधर तिरंगा फहराने के बाद फीना सहित अन्य गाँवों के सक्रिय क्रांतिकारी पुलिस से बचने के लिए अपने-अपने विवेक के अनुसार यहाँ-वहाँ जाकर भूमिगत हो गए। नूरपुर से सभी क्रांतिकारी लगभग भागते हुए अपने-अपने ठिकाने पहुँचे थे। अधिकांश अपने गाँव के जंगलों में छिपकर अंधेरा होने का इन्तजार करने लगे। लगभग सभी क्रांतिकारी, पुलिस से औझल रहना चाहते थे। बसंत सिंह उर्फ वॉलिंटियर साहब, रणधीर सिंह, प्रताप सिंह फीना के उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित गन्ने के खेतों में पहुँचकर छिप गए थे। कुछ को छोड़कर फीना आने वाले सेनानी मुख्य रास्ते की बजाय खेतों से गुजर कर ही गाँव पहुँचे थे, कई सेनानी ग्राम धारूपुर एवं उमरा के खेतों से गुजर कर फीना पहुँचे थे। क्योंकि उन्हें आशंका थी कि पुलिस पीछा करती हुई अमरोहा मार्ग से आ सकती है। कुछ लोग काफी जल्दी फीना के पास पहुँच गए थे, और खेतों-जंगलों में रुक गए थे, ये अंधेरा होने पर ही घर जाना चाहते थे। कुछ सेनानी ऐसे भी थे, जिन्होंने सोचा कि हम भारी भीड़ के बीच में खड़े थे, इसलिए पुलिस हमारा पता लगा नहीं लगा पाएगी, यह सोच वे रात में अपने घर पर ही सो गए, और मुखबिरी के कारण पुलिस के छापे में पकड़े गए