भारतीय नववर्ष और विक्रम संवत्

घटे , दिन, महीने तथा वर्ष के रूप में समय की गणना का मानव पसभ्यताओं, तथा कृषि कार्यों के विकास में बहुत बड़ा योगदान है। समय बीतने की सतत् प्रक्रिया को क्रमबद्ध तथा युक्तियुक्त तरीके से प्रदर्शित करने के लिए कैलेंडर का निर्माण किया जाता है। जब बीत चुके तथा आने वाले वर्षों के कैलेंडर का निर्माण करने की योग्यता हासिल हो जाए तो इस पद्धति को संवत् एवं पंचांग की परिपाटी के रूप में जाना जाता है, यह बड़ी बौद्धिक उपलब्धि होती है। लगभग 2000 साल से भारतीय सनातन परंपराओं में विक्रम संवत् अपनाया जाता है। विक्रम संवत् उज्जैन के महाराजा विक्रमादित्य द्वारा शकों से भारत को मुक्त कराने की विजय के उपलक्ष में चलाया गया था। महाराजा विक्रमादित्य, श्री रामचन्द्र जी तथा श्री कृष्ण जी के बाद सबसे लोकप्रिय, पराक्रमी, अनेक विद्याओं में पारंगत तथा महाप्रतापी राजा माने गए हैं। महाराजा विक्रमादित्य से जुड़े सैकड़ों किस्से-कहानियां भारत के क्षेत्रीय अंचलों तक फैली हैं। कई शोधों से पता चला है कि महाराजा विक्रमादित्य के शासन के दौरान भारत हर क्षेत्र में उन्नति तथा प्रसिद्धि के सर्वोच्च शिखर पर था, इससे उनकी प्रसिद्धि अरब-मध्य एशिया के देशो तक फैल गई थी। महाराजा विक्रमादित्य की लोकप्रियता के कारण ही बाद में हुए अनेक राजाओं ने अपने नाम के आगे विक्रमादित्य शब्द का प्रयोग किया। परंतु यह विडंबना और दुर्भाग्य का विषय है कि इन्हीं विक्रमादित्य द्वारा स्थापित तथा लोकमान्य विक्रम संवत् को भारत के राष्ट्रीय संवत् का दर्जा प्राप्त नहीं है। लंबी परतंत्रता के दौरान भारत के शासकों द्वारा राजकीय कार्यों में सैकड़ों सालों तक विक्रम संवत् का प्रयोग नहीं किया गया, जिससे इनका नाम और प्रसिद्धि लुप्त हो गई। स्थिति यहां तक पहुंच गई कि प्रत्यक्ष साक्ष्यों के अभाव में ज्यादातर आधुनिक इतिहासकार महाराजा विक्रमादित्य को एक पौराणिक चरित्र भर मानते हैं। थोड़ी-बहुत तसल्ली की बात यह रही कि, सनातनी समुदाय ने अनेक कठिनाइयों के बावजूद, व्यक्तिगत तौर पर विक्रम संवत् का प्रयोग जारी रखा। वर्तमान काल की सनातनी परंपराओं में नववर्ष की शुरूआत विक्रम संवतु के अनुसार ही होती है। नेपाल ने विक्रम संवत् को ही अपना राष्ट्रीय संवत् बनाया है। भारत के संविधान की प्रस्तावना के हिंदी रुपांतरण में अंकित की गई तिथि भी विक्रम संवत् के अनुसार ही है। तेजी से वैश्विक हो रही इस दुनियाँ में लोगों की पहचान उसकी संस्कृति एवं राष्ट्रीयता से की जा रही है, इस दृष्टि से भी विक्रम संवत् को राष्ट्रीय संवत् बनाना आवश्यक है। धीरे-धीरे भारत में विक्रम संवत् को राष्ट्रीय संवत् बनाने की मांग जोर पकड़ रही है। इसी क्रम में भारत सरकार ने महाराजा विक्रमादित्य पर पांच रुपये का टिकट भी जारी किया है। विक्रम संवत् पर आधारित नववर्ष, अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 6 अप्रैल को शुरू हो रहा है, इसलिए यह अंक सनातन नववर्ष तथा भारतीयता के पर्याय, महाराजा विक्रमादित्य पर केंद्रित रखा गया है। इस पावन अवसर पर 'दी कोर' परिवार देशवासियों के लिए सुख-समृद्धि एवं शांति की कामना करता है।


अतिथि सम्पादक हेमन्त कुमार...