एथलेटिक्स : उत्तरोत्तर होता सुधार

दौड़ना, कूदना, उछलना और प्रक्षेपण मानव की प्रारम्भ से ही मनोवृति रही है। आदि काल में भी लोग स्वयं को स्वस्थ रखने के लिए इन क्रियाओं में भाग लिया करते थे। बाद में इन क्रियाओं को एथलेटिक्स-स्पर्धाओं के रूप में मान्यता मिलने लगी। इतिहास में इन स्पर्धाओं को खेल के रूप में आयोजित किए जाने का उल्लेख 776 ईशा पूर्व शुरू हुए पहले प्राचीन ओलिम्पिक खेलों में मिलता है, तब स्टेडियम की लम्बाई के बराबर दौड़ने की एक स्पर्धा हुई थी। बाद में प्रक्षेपण की स्पर्धाएँ भी होने लगीं। आधुनिक काल में 17वीं शताब्दी में सम्पन्न कोट्स वर्ल्ड ओलिम्पिक गेम्स में भी एथलेटिक्स स्पर्धाओं के आयोजित किए जाने का उल्लेख मिलता है। तत्पश्चात 1812 में रॉयल मिलिट्री कॉलेज, सैण्डहर्स्ट में एथलेटिक्स मुकाबलों का आयोजन हुआ था। एथलेटिक्स-स्पर्धाओं को आधुनिक स्वरूप देने की प्रक्रिया यूरोप और अमेरिका में 19वीं सदी में प्रारम्भ हुई थी। 1880 में इंग्लैण्ड में अमेच्योर एथलेटिक्स एसोसिएशन की स्थापना की गई जिसके बाद एथलेटिक्स स्पर्धाएँ सुनियोजित तरीके से आयोजित की जाने लगीं। 1896 के पहले आधुनिक ओलिम्पिक खेलों में ये स्पर्धाएँ आकर्षक का प्रमुख केन्द्र थीं। भारतीय अमेच्योर एसोसिएशन की स्थापना 1946 में की गई, गुरुदत्त सोंधी इसके पहले अध्यक्ष चुने गए।



भारतीय अमेच्योर एसोसिएशन के गठन से वर्षों पूर्व 1900 में पहली इंटर प्रोविंशियल चैम्पियनशिप का आयोजन किया गया था। यह स्पर्धा 1926 तक अनवरत रूप से आयोजित होती रही। 1924 में पेरिस ओलिम्पिक हेतु भारतीय टीम के चयन हेतु पहले भारतीय ओलिम्पिक खेल की नींव रखी गई। उस समय पुरुषों के लिए कुल दस स्पद्धाओं का आयोजन हुआ था। इसके बाद इंटर प्रोविंशियल चैम्पियनशिप को प्रत्येक दो वर्ष में एक बार राष्ट्रीय स्पर्धा के रूप में आयोजित किया जाने लगा। 1934 में पहली बार महिलाओं के लिए भी मुकाबले आयोजित किए गए। 1949 से राष्ट्रीय स्पर्धा का आयोजन प्रति वर्ष किया जाने लगा, वर्तमान में प्रति वर्ष प्रादेशिक संगठनों के लिए इंटर स्टेट चैम्पियनशिप तथा सभी इकाइयों के लिए ओपन चैम्पियनशिप का आयोजन होता है इनके अतिरिक्त फेडरेशन कप, क्रॉस कण्ट्री चैम्पियनशिप, राष्ट्रीय मैराथन, पैदल चालन आदि स्पद्धाओं का भी आयोजन किया जा रहा है।


ओलिम्पिक खेलों में भारतीय एथलीट


भारत ने ओलिम्पिक खेलों में अधिकारिक रूप से भाग भले ही 1920 के एण्टवर्प खेलों में लिया था लेकिन भारत के खाते में प्रारंभिक सफलता सदी के प्रारम्भ में ही 1900 में पेरिस में हुए दूसरे ओलिम्पिक खेलों में दर्ज हो गई थी इन खेलों में भाग लेते हुए कलकत्ता के एक एंग्लो-इण्डियन एथलीट नॉर्मन प्रिचार्ड ने 200 मी. एवं 200 मी. हर्डल्स मुकाबलों में रजत पदक जीत कर यह करिश्मा किया था। 16 जुलाई 1900 की तारीख भारतीय खेलों के इतिहास में इसी कारण अपना अलग महत्व रखती है। इसी दिन प्रिचार्ड ने 200 मी. हर्डल्स स्पर्धा में अमेरिका के मशहूर एथलीट एल्विन क्रेजलीन के बाद दूसरा स्थान हासिल किया था। चार दिन पश्चात 22 जुलाई को उन्होंने अपना दूसरा रजत पदक 200 मी. दौड़ में 22.8 से. का समय निकालते हुए जीता। इस स्पर्धा का स्वर्ण पदक अमेरिका के जॉन वॉकर टियुक्सबरी ने 22.2 से. के समय के साथ अर्जित किया था। उल्लेखनीय है कि इन खेलों में उन्होंने निजी हैसियत से शिरकत करते हुए कुल चार स्पर्धाओं में अपनी किस्मत आजमाई थी। उक्त दो स्पद्धाओं के अतिरिक्त उन्होंने जिन दो अन्य स्पद्धाओं में भाग लिया था वे थीं-100 मी. दौड़ और 100 मी. हर्डल्स, 1920 के ओलिम्पिक खेलों में चार भारतीय एथलीटों को सर दोराबजी टाटा ने भाग लेने एण्टवर्प भेजा था। ये एथलीट थे-पीसी बनर्जी, पीडी चौघुले, दातार सिंह एवं फैजादी इनमें से कोई भी एथलीट उल्लेखनीय प्रदर्शन नहीं कर सका। चौघुले ने मैराथन में भाग लिया और 58 धावकों के बीच 2 घ., 50 मि., 45.2 से. का समय निकालते हुए 19वें नम्बर पर रहे।



1923 में भारतीय ओलिम्पिक कमेटी का गठन होने के बाद पेरिस ओलिम्पिक में भारत ने पहली बार अधिकृत रूप से आठ एथलीटों का दल भेजा। कहानी वही रही। कोई भी फायनल में स्थान बनाने में सफल नहीं हो सका, टीके पिट 400 मी. में सेमी फायनल तक पहुँचे और दिलीप सिंह लम्बी कूद में चौथाई इंच से फायनल में प्रवेश पाने से वंचित रहे।


इसके बाद से लगातार भारतीय एथलीट ओलिम्पिक खेलों में भाग ले रहे हैं लेकिन प्रिचार्ड के बाद कोई भी भारतीय खिलाड़ी अब तक विक्टरी-स्टेण्ड तक नहीं पहुँच सका। इस दौरान कुछ खिलाडियों का प्रदर्शन उल्लेखनीय जरूर रहा जब वे फायनल में स्थान बनाने में सफल रहे। नीचे फायनल में स्थान बनाने वाले खिलाडियों का विवरण दिया जा रहा है ।