साधु-संतों की माला भी कराती है संप्रदाय की पहचान

साधु-संतों में माला का भी विशेष महत्त्व है। अलग-अलग मत, पंथ और संप्रदाय के साधु-संत अलग-अलग तरह की माला पहनते हैं। वैष्णव संप्रदाय में अधिकांश महात्मा जहाँ तुलसी की माला पहनते हैं, वहीं शैव संप्रदाय के संत-महात्मा रुद्राक्ष की माला धारण करते हैं। उदासीन अखाड़े के संतों में माला की कोई बाध्यता नहीं है। अखाड़ा या उपसंप्रदाय के साधु-संत भी अपनी तरह से माला धारण करते हैं। नागा संन्यासी नियमित रूप से गेंदे की माला धारण करते हैं। साधु-संत कमंडल, चिमटा और त्रिशूल भी साथ रखते हैं।


   


विभिन्न संप्रदाय के साधु-संत अलग-अलग तरह की मालाएँ धारण किए नजर आते हैं। मत, पंथ और संप्रदाय के हिसाब से इनकी महत्ता है। वैष्णव संप्रदाय में तुलसी और शैव संप्रदाय में रुद्राक्ष की माला चलती है। ऐसे साधु-संत भी हैं जो सोने में जड़े रुद्राक्ष की माला धारण करते हैं। वहीं कुछ स्फटिक की माला पहनते हैं। इन सबसे अलग ज्यादातर नागा संन्यासी नियमित रूप से गेंदे की माला पहनते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो गले और सिर में रुद्राक्ष की ढेर सारी माला धारण करते हैं। महानिर्वाणी अखाड़े के साधु वैष्णव मंत्रों के जप के लिए तुलसी की माला पहनते हैं। गणेश जी के मंत्र के लिए हाथी दाँत की माला का विधान है सो कई महात्मा हाथी दाँत की भी माला धारण करते हैं। त्रिपुर सुंदरी की मंत्र साधना के लिए रक्त चंदन अथवा रुद्राक्ष को श्रेष्ठ माना जाता है।