स्वतन्त्रता सेनानियों से साक्षात्कारः अविस्मरणीय पल

आजादी का अंतिम चरण 1942 से 1947 के बीच चला और इस बात को गुजरे लगभग 70 साल हो चुके हैं। इस कारण स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाले बहुत कम लोग जीवित बचे हैं। कुछ दशकों बाद स्वतंत्रता सेनानी इतिहास की बात हो जाएंगें। इसलिए जिन पीढ़ियों एवं लोगों को स्वतंत्रता सेनानियों से रूबरू होने का मौका मिला है, वे भाग्यशाली है। ग्राम फीना में स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लेने वाले दो क्रांतिकारी जीवित हैं। इन्होंने 1942 के असहयोग आंदोलन में भाग लिया था। सौभाग्य से इं. हेमन्त कुमार जीको उनसे बातचीत करने का मौका मिला। इस बातचीत का सार प्रस्तुत है


स्वतंत्रता सेनानी प्रताप सिंह सैनी


श्री प्रताप सिंह सैनी का जन्म जिला बिजनौर (उ. प्र.) के ग्राम फीना में 15 अक्टूबर 1924 को हुआ था। इनके पिताजी का नाम चंदन सिंह सैनी तथा माता जी का नाम केशर देवी है। इनके पिताजी खेती-किसानी से जीवनयापन करते थे। श्री प्रताप सिंह सैनी कक्षा 5 तक पढ़े हुए हैं, इन्होंने अपनी पढ़ाई गाँव में स्थित प्राइमरी विद्यालय से की थी। सन् 1942 में गाँधी जी एवं कांग्रेस द्वारा चलाए जा रहे ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो' तथा करो या मरो' का आंदोलन शुरू हुआ। उस समय गाँव में क्षेत्रपाल सिंह, बसंत सिंह उर्फ वालंटियर साहब, डॉ भारत सिंह, होरी सिंह तथा दिलीप सिंह स्वतंत्रता आन्दोलन में बहुत सक्रिय तथा अग्रणी थे। क्षेत्रपाल सिंह से प्रेरित होकर इन्होने स्वतंत्रता आंदोलन के कार्यक्रमों में भाग लेना शुरू कर दिया। 16 अगस्त 1942 को नूरपुर के थाने में पहुँचकर तिरंगा फहराया जाना था। इसमें फीना गाँव से जाने वालों में श्री प्रताप सिंह सैनी भी थे। वे क्षेत्रपाल सिंह की टोली में गए थे। तब इनकी आयु मात्र 17-18 वर्ष की थी, और ये सबसे कम उम्र के स्वतन्त्रता सेनानियों में से एक थे। फीना के निडर स्वतन्त्रता सेनानी सुखलाल सिंह सांगी द्वारा रतनगढ़ में लेटर बॉक्स को तोड़ने तथा नूरपुर में चाँदपुर-धामपुर तिराहे पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज एवं भारत सिंह के सिर में चोट लगने से खून बहने की घटना इनके सामने घटी थीनूरपुर से लौटने के बाद आप लगभग तीन महीनों तक जंगलों में क्षेत्रपाल सिंह, डॉ भारत सिंह, होरी सिंह आदि के साथ भूमिगत रहे।



इस दौरान आपने देश के लिए अनेक कुर्बानियाँ दी। पुलिस कार्यवाही में इनके पिताजी को अपने घर की संपत्ति तथा बैल बेचने पड़ गए थे। माता जी का पूर्व में निधन हो चुका था, जिससे इनके पिताजी को भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। जब देश आजाद हुआ और स्वतंत्रता सेनानियों को पेंशन मिलने का समय आया, तब प्रताप सिंह सैनी आवश्यक कागजात जमा न कर पाने के कारण पेंशन से वंचित रह गए। आजादी के बाद आप सामाजिक एवं साहित्यिक कार्यों में लग गए। इस बीच आपने देश के सामाजिक विकास तथा साहित्य में काफी चिंतन-मनन किया और कई गीत तथा पुस्तकें लिखीं। आप व्यवस्थाओं से असंतुष्ट और बेचैन रहते थे, इस कारण क्षेत्रपाल सिंह ने इनका उपनाम ‘बेचैन' रख दिया था। साहित्यिक अभिरुचि के कारण आपको क्षेत्र के अनेक प्रतिष्ठित लोग जानने-पहचानने लगे। धीरे-धीरे आपको विभिन्न मंचों पर भाषण एवं काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया जाने लगा और कुछ समय बाद ही आप एक स्पष्ट वक्ता के रूप में उभरे। सन् 1975 में लागू हुई इमरजेंसी के दौरान आपने एक तीखा भाषण दिया, जिसकी प्रतिक्रिया स्वरुप इन्हे गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। इमरजेंसी के दौरान आप लगभग 21 दिन जेल में रहे। इमरजेंसी के काल में जेल में रहने के दौरान आप को पुलिस के व्यवहार से काफी कष्ट हुआ। जिस पर आपने अपनी प्रसिद्ध कविता “वीर भगत सिंह फिर मत लेना काया भारतवासी की........'' लिखी।