देश विदेश मे नव वर्षात्सव

भारत देश-भारतीय संस्कृति में नववर्ष का शुभारम्भ 'नव संवत्सर' से ही माना जाता है यही विक्रम संवत्सर है। इस दिन भगवान ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना हुई तथा प्रथम युग सतयुग का प्रारम्भ हुआ। भारतवर्ष में हिन्दु चैत्र प्रतिपदा को नव वर्ष के रूप में मनाते हैं। यह दिन चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा है। यह तिथि विक्रम संवत के अनुसार मान्य है। मान्यता है कि यही दिन सुख समृद्धि प्रदाता कहा जाता हैं। इस दिन सूयोपसिना के साथ आरोग्य, समृद्धि और आचरण की पवित्रता के लिए कामना की जाती है।


सम्पूर्ण विश्व में नव वर्ष धूम धाम से मनाया जाता है। लोग एक दूसरे को बधाईयाँ देते हैं, तथा भावी जीवन के प्रति जव मंगलकामनाएँ प्रकट करते हैं। यह पर्व समस्त देशों में प्रायः अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार एक जनवरी को मनाया जाता है। सबसे पहले एक सौ तरेपन ईस्वी पूर्व में यह पर्व एक जनवरी को मनाया गया। 45 ईस्वी पूर्व रोम के तानाशाह जुलीयस सीजर ने जूलीयन कलैण्डर का शुभारम्भ किया। एक जनवरी को नव वर्ष के रुप में मनाने का प्रचलन 1582 ईस्वी ग्रेगेरियपन कलैण्डर के प्रारम्भ के बाद बहुतायत से हुआ। पोप ग्रेनरी अष्टम ने 1582 में इसे तैयार किया। ग्रेनरी ने ही इसमें लीप ईयर का । प्रावधान रखा। अब यह पंचाग सर्वमान्य हो गया और राजकीय तथा व्यावसायिक कार्य भी इसी के अनुसार संचालित होता हैं। विभिन्न देशों में नववर्ष का स्वागत इस प्रकार करते हैं।



भारत देश-भारतीय संस्कृति में नववर्ष का शुभारम्भ ''नव संवत्सर'' से ही माना जाता है यही विक्रम संवत्सर हैइस दिन भगवान ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना हुई तथा प्रथम युग सतयुग का प्रारम्भ हुआ। भारतवर्ष में हिन्दु चैत्र प्रतिपदा को नव वर्ष के रुप में मनाते हैं। यह दिन चॆत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा है। यह तिथि विक्रम संवत के अनुसार मान्य है। मान्यता है कि यही दिन सुख समृद्धि प्रदाता कहा जाता हैं। इस दिन सूयोर्पासना के साथ आरोग्य, समृद्वि और आचरण की पवित्रता के लिए कामना की जाती है।


जैन समुदाय दीपावली के दिन से ही नव वर्ष का शुभारम्भ मानते हैं। इसे 'वीर निर्वाण संवत्' कहा जाता है। मुस्लिम बंधु हिजरी सन् के नाम से नया वर्ष मोहरम की पहली तारीख से मानते हैं। मुस्लिम पंचाग की गणना चाँद के अनुसार की जाती है। फारसी लोग नववर्ष को ''नवरोज'' के नाम से मनाते हैं, जिसका प्रारम्भ तीन हजार वर्ष पहले हुआ था। ऐसा कहा जाता हैं कि इसी दिन फारस के राजा “जमजेद'' सिंहासनारुढ़ हुए थे। फारसी लोग नववर्ष 19 अगस्त को मनाते हैं।


प्रान्तीय स्तर पर भी नव वर्षोंत्सव के आयोजन में भिन्नता होती है। महाराष्ट्रीयन नववर्ष का शुभारम्भ चैत्र माह की प्रतिपदा से मानते हैं। इस दिन बाँस को नई साड़ी पहनाई जाती है भीतर पीतल के लोटे को रखकर गुड़िया बनाई जाती हैं और उसकी पूजा की जाती है। गुड़िया को घरों के बाहर लगाते हैं।


हिन्दू नववर्ष के रुप में “गुड़ी पड़वा' की पूजा करते हैं इस दिन सूर्य, नीम की पत्तियाँ, पूरणपोली, श्रीखण्ड ध्वजा पूजन का विशेष महत्व रहता है। नये आभूषण व वस्त्रों के साथ शक्कर से बनी आकृतियों की माला पहना कर गुडिया को सजाते हैं। पूरण पोली और श्रीखण्ड का नैवेद्य चढ़ाकर नव दुर्गा, भगवान राम तथा हनुमान जी की आराधना होती है। इस दिन सुन्दरकाण्ड, रामरक्षा स्त्रोत और देवी भगवती के लिए मन्त्र जाप का विशेष महत्व माना जाता है।



मलियाली समाज नववर्ष का शुभारम्भ “ओणम'' से मानते हैं, जो अगस्त व सितम्बर में मनाया जाता है। मान्यता हैं कि इसी दिन राजा बली अपनी प्रजा से मिलने धरती पर अवतरित होते हैं। उनके स्वागत हेतु फूलों की रंगोली बनाते है और मिष्ठानों का आनन्द लिया जाता है। तमिल लोग “पोंगल' पर्व से ही नववर्ष का शुभारम्भ मानते हैं। इसी दिन से तमिल माह की पहली तारीख मानी जाती है। यह त्यौहार प्रतिवर्ष 14-15 जनवरी को मनाया जाता है।


सूर्यदेव को जो प्रसाद चढ़ाया जाता है, उसे ही पोंगल कहते हैं। नई फसल के आगमन की खुशी में यह पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है।


बंग समुदाय बैसाख की पहली तारीख को नववर्ष का उत्सव मनाते है। नई फसल की कटाई और व्यापारियों द्वारा नये बही खातों के शुभारम्भ करने की प्रथा के कारण इस पर्व को मनाते है। पंजाबी समुदाय अपना नववर्ष वैसाखी को ही मानते है। यह तिथि प्रतिवर्ष 13-14 अप्रैल की होती है। इस अवसर पर नये वस्त्र, नये गहने पहनते हैं तथा भंगड़ा, गिद्वा आदि नृत्यों की प्रस्तुति की जाती है। गुजराती पंचाग भी विक्रम संवत पर आधारित हैं। नववर्ष पर प्रत्येक घर में नये पकवान व मिष्ठान बनते हैं और एक दूसरे को नववर्ष की बधाइयाँ दी जाती हैं।


जर्मनी के लोग नववर्ष के स्वागत हेतु ठण्डे पानी में पिघला हुआ शीशा डालते है। उससे बनी हुई आकृति को भविष्य की जानकारी देने वाली मानी जाती हैं जैसे दिल का आकार बना तो शादी होगी। गोलाकार बना तो सम्पूर्ण वर्ष भाग्यशाली होगा। नववर्ष की पूर्व संध्या पर जो भोजन किया जाता हैउसका आंशिक भाग आधी रात तक बचा कर रखा जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से आगामी वर्ष में घर में पर्याप्त मात्रा में भोजन सामग्री बनी रहेगी।


जापान में नववर्ष को “ओसोगात्सु'' कहते हैं। इस दिन सभी कारोबार बंद रहता है। घर के मुख्य द्वार पर रस्सी बाँधी जाती है ताकि बुरी शक्तियाँ बाहर ही रहे। लोग हर्षोल्लास के साथ जोर-जोर से हँसते हैं। घड़ी में 12 बजने के पहले 108 घण्टियाँ यह दिखाने के लिए बजायी जाती हैं कि इतनी सारी समस्याओं का समाधान कर दिया गया है।


आस्ट्रेलिया में नव वर्ष के दिन सार्वजनिक अवकाश रहता हैं। लोग अर्ध रात्रि से ही अपनी कारों के हॉर्न, चर्च की घण्टियाँ तथा सीटिंयाँ बजाकर नववर्ष का स्वागत करते हैं।


दक्षिणी अफ्रीका यहाँ के लोग इस दिन नववर्ष के उपलक्ष्य में चर्च की घण्टियाँ बजाने के साथ ही बन्दूक की गोलिया भी दागते हैं।


मध्य व दक्षिण अमेरिका यहाँ नये साल के दिन लोग पीले रंग के कपड़े खरीदते हैं जो सोने (धातु) का प्रतीक हैं और सुख समृद्धि का सूचक होता है।


पूर्तगाल व स्पेन यहाँ के लोग नववर्ष पर 'केश्मोकेश्पर'' नाम के बारह अँगूर खाते हैं। मान्यता हैं कि इससे आगामी बारह महीने सुखपूर्वक व्यतीत हो पायेंगे।


फिलीपीन्स नववर्ष पर लोग पोलकाडॉट्स (गोल बिन्दुओं वाला) कपड़ा पहनते हैऔर गोलाकार वाले फलों का सेवन करते हैं। इसे समृद्धि का प्रतीक मानते हैं।


प्यूटोटिको- नववर्ष पर अपने घर की बॉलकनी से ठण्डा पानी बाहर फेंकने की प्रथा हैं।


ब्रिटेन यहाँ नववर्ष पर उपस्थित प्रथम मेहमान को विशेष स्वागत सत्कार के साथ पूज्य भाव से देखा जाता है। मान्यता हैं कि वही प्रथम मेहमान उनके लिए सौभाग्य व सुखश्री का आविर्भाव कराने में सहयोगी होता है। उसे कोई न कोई उपहार लाना जरुरी होता है। जब वह मुख्य द्वार से प्रवेश करता है तो उसके साथ रसोई घर का सामान, घर के मुखिया हेतु शराब या आग जलाने हेतु कोयला जैसा उपहार होता है। बिना उपहार के उसके लिए प्रवेश वर्जित होता है। लौटने के लिए पीछे के दरवाजे का प्रयोग किया जाता है।


डेनमार्क यहाँ के लोग नववर्ष के दिन घर की पुरानी प्लेटों को अपने दोस्तों, पड़ौसियो, रिश्तेदारों के घरों के सामने तोड़ते हैं। ऐसा किया जाना उनकी आत्मीयता का परिचायक है। जिस घर के बाहर सर्वाधिक प्लेटें तोड़ी जाती हैं वह परिवार सर्वाधिक प्रिय माना जाता है।